सरकारी नौकरी के नाम पर ठगी करने वाले उत्तर प्रदेश और आसपास के राज्यों में सक्रिय एक गिरोह खुद को गृह मंत्रालय और अन्य सरकारी विभागों का अफसर बताता है




दिल्ली संवाददाता। सरकार कहती है सबका साथ, सबका विकास, मगर सवाल ये है कि सबका विश्वास ठगों के हवाले क्यों है। सरकारी नौकरी के नाम पर ठगी का! नाम बदलते हैं, चेहरे छुपते हैं, मगर शिकार वही आम आदमी होता है और अफसोस ये है कि जब वो मदद के लिए पुलिस और प्रशासन के पास जाता है, तो उसे ही कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है।


दरअसल, उत्तर प्रदेश और आसपास के राज्यों में सक्रिय एक गिरोह खुद को गृह मंत्रालय और अन्य सरकारी विभागों का अफसर बताकर लोगों को सरकारी नौकरी दिलवाने का झांसा देता है। पीड़ितों का आरोप है कि इन्हें रेलवे, बैंक, शिक्षक और अन्य विभागों में फर्जी आईडी से इंटरव्यू और नियुक्ति पत्र दिए गए, कई तो दो महीने तक सैलरी भी पा चुके हैं, जिससे विश्वास और गहरा हो जाता है, जब सच्चाई सामने आती है, तो पैसा जा चुका होता है, भरोसा टूटा होता है, और पुलिस का रवैया ढीला होता है। इस गैंग के काम करने का तरीका बेहद पेशेवर और खतरनाक है...गिरोह के सदस्य अलग-अलग नामों और पहचान के साथ काम करते हैं...इस गिरोह के नाम भी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं लगते....जयप्रकाश दुबे, दयाशंकर, सोनू उर्फ असमुद्दीन, सिंबल मसीह, आदि। ये लोग दिल्ली के गृह मंत्रालय के बाहर या अन्य सरकारी इमारतों के पास मिलते हैं ताकि खुद को बड़ा अफसर साबित कर सकें। फर्जी रसीद, इंटरव्यू, नियुक्ति पत्र और यहां तक कि सैलरी तक देकर लोगों को यकीन दिलाते हैं। धमकी दी जाती है कि अगर किसी ने आवाज़ उठाई तो उसे ही फंसा दिया जाएगा। पीड़ितों की कहानी डरावनी है, मगर असलियत है...सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि इस गिरोह के एक सदस्य दयाशंकर की बातचीत की ऑडियो रिकॉर्डिंग भी मौजूद है, जिसमें वह नौकरी दिलाने के नाम पर पैसों की डील करते हुए साफ़-साफ़ सुना जा सकता है। ये ऑडियो केवल सबूत नहीं है, बल्कि इस सिस्टम की नाकामी की गूंज है, जो इतनी ठोस जानकारी और साक्ष्यों के बावजूद सोया हुआ है। सुनिए...दयाशंकर, ऑडियो रिकॉर्डिंग 


वहीं एक व्यक्ति के अनुसार, 40 लाख रुपये चार लोगों से लिए गए...नौकरी के नाम पर। रसीद सिर्फ 2 लाख की, ताकि सबूत कम बचे। कई बार पुलिस को सूचना दी गई, वीडियो दिए गए, नाम बताए गए, फिर भी कार्रवाई नहीं हुई। एक पीड़ित को तो मुख्यमंत्री आवास तक जाना पड़ा, लेकिन जवाब फिर वही...जांच जारी है। जब इस तरह के गिरोह खुलेआम ऑपरेट कर रहे हैं, और पीड़ित वीडियो, रसीद, बैंक ट्रांजैक्शन, और सबूत दे रहे हैं, तो कार्रवाई क्यों नहीं हो रही? क्या पुलिस भी इस खेल का हिस्सा है? या फिर कोई बड़ा राजनीतिक संरक्षण है? फर्जी नियुक्ति पत्र बांटना, फर्जी आईडी पर पैसे लेना, ये केवल धोखाधड़ी नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से भी जुड़ा मामला है। आजकल देशभर में ऐसे फर्जीवाड़े बढ़ रहे हैं...कोई रेलवे में टीटी बना रहा है...कोई बैंक में क्लर्क कोई शिक्षक बनकर बच्चों को पढ़ा रहा है, वो भी फर्जी नियुक्तियों के दम पर। और जब सच बाहर आता है, तो नौकरी जाती है, पैसा डूबता है और सिस्टम खामोश हो जाता है। सवाल सरकार से है कि जब एक आम आदमी को फंसाने के लिए सिस्टम इतना तेज़ हो जाता है, तो फिर इन फर्जीवाड़ा करने वालों पर कार्रवाई इतनी धीमी क्यों है क्या यही है डिजिटल इंडिया का कड़वा सच जहां वादे डिजिटल हैं, और ठगी रियल अगर सिस्टम के अंदर बैठे लोग ही इन गैंगों को संरक्षण देंगे, तो फिर आम आदमी न्याय के लिए कहां जाएगा? सरकार को ये तय करना होगा कि जनता की नौकरी बेचने वालों को बचाओगे, या उन्हें जेल पहुंचाओगे।